शनिवार, 31 दिसंबर 2011

पुराने "वर्ष" की पीड़ा.........


नववर्ष पर विशेष :-
============
पुराने "वर्ष"  की पीड़ा.........
----------------------------
देखो,
तुम मुझे यूँ - ना भुला देना, 
चला  हूँ, मैं तुम्हारे साथ-साथ,
कभी, बनकर, तुम्हारा अपना,
कभी, बैगाना,
बचपन में, तुम्हारे साथ, खेला,
जवानी में, अरमानो से -खेला,
बुढ़ापे में, तन्हाई  को झेला,
अब, अंत में , सोच रहा हूँ,
की,
मैंने, तुम्हारे साथ,
अपने, कुछ, अनमोल, यादगार,
पल, 
जो बिताये, थे तुम्हारे, आगोश में,
तब, रहता था , खामोश मैं, 
वे, याद रहेगे, मुझे, सदैव, मेरे  जहन में,
कल, वे पल, बन जायेगे इतिहास,
तुम मुझे यूँ - ना भूल जाना '
क्योंकि,
मैं, हूँ-----बिता हुआ, साल,
देखो,
तुम मुझे यूँ - ना भुला देना, 
++++++++++++++
बस,
आज रात आखरी रात है, मेरी,
तुमसे ये, अंतिम मुलाकात है, मेरी 
आज से, अब से, अभी से,
तुम मुझे, अपना ना , समझना,
मुझे , पता है,
तुम खुश, हो मेरी जुदाई पर,
और, अपनी बेवफाई, पर,
मैंने, तुम्हे सदा अपना माना,
तुम्हे, देखा, परखा और जाना,
मैं, 
दुखी हूँ,  - क्योकि, 
होते ही,  आधी रात ,
तुम छोड़, दोगे मेरा साथ,
थाम लोगे, किसी---
अनजने, न्वातुग,
अजनबी, का हाथ ,
हहोल्ला,
और ख़ुशी के साथ .....
भले ही वह, नव वर्ष होगा,
पर, फिर भी सम्भलकर रहना ,
कहीं , दे दे ना , वो तुम्हे धोखा,
उसका, नही कोई भरोसा,
यकीन है, मुझे 
उसके आने पर,
तुम खुशिया, मनाओगे जरुर,
नया, वर्ष मनाओगे जरुर ,
छलका, के मय का प्याला,
बहका कर, कदम अपने ,
बनाकर , बहाना ,
उसके,आगोश में जावोगे जरुर, 
देखो,
तुम मुझे यूँ - ना भुला देना, 
++++++++++++++++++

यशपाल सिंह "एडवोकेट"
रामपुर मनिहारान
जिला- सहारनपुर -- उ. प्र.

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

मेरे पास होने का , अहसास करना...........


मेरे पास होने का , अहसास करना...........
++++++++++++++++++++++++
जब,
सर्दियों की ठंडी,हवा चले,
यादों, को सहला जाये,
तब,
मुझे , तुम याद  करना,
निकल, आउगा , मैं  फोटो से ,
बस, आँखें मुंद, फैलाकर अपनी बाँहे,
मेरे पास होने का , अहसास करना...........
++++++++++++++++++++++++
तुम, 
समझना, घने कुहरे को , बंद कमरा ,
कुहरे, अपारदर्शिता को , तन्हाई,
सर्द , मौसम को, प्यार का मौसम,
और, इन दिल छु जाने वाली, 
हवाओ को,
मेरे ,  आने का अहसास ,
बैचेनी, को सर्दियों की प्यास ,
बस, थमाकर अपने, हाथ  में,
गर्म,  काफ़ी का प्याला ,
मेरे, आने का इंतजार करना , 
बस, आँखें मुंद, फैलाकर अपनी बाँहे,
मेरे पास होने का , अहसास करना...........
++++++++++++++++++++++++
दिल, से ...
हो, सकता है कि, तुमे ठंड लग रही हो,
उत्साह, कि कमी हो, 
आलशय, छाया हो तुम पर,
यादों, में भी नमी हो,
बस , इतना रखना, ध्यान, 
ना, निकलना, मुझे और मेरी यादों को,
अपने, दिल से,
जब, तक मैं रहूँगा वहाँ पर.
तब , तक एक अजब सी गर्मी ,
रहेगी, तुम्हारे सीन में,
जलता रहेगा, ये दिल, 
जैसे- अलाव ,
वो भी, बिन, 
इंधन,
सुलगती,
रहेगी, कोई ना कोई , चिंगारी,
बिना , चमके 
बिना , आवाज 
बिना,  बुझे,  
कंही ना कंही ,
उम्र  भर, 
ऐसे में,
बस, आँखें मुंद, फैलाकर अपनी बाँहे,
मेरे पास होने का , अहसास करना...........
++++++++++++++++++++++++
अकेला ना , 
समझना अपने आपको,
मैं, छुपा रहंगा, तुम्हारे ह्रदय में,
सुलगती, चिंगारी के रूप में ,
गर्म, करता रहुँगा,
तुम्हारे, रात और दिन,
हर पल , रहुगा तुम्हारे साथ,
तुमने, 
जब,  दिल लगाया  था , मुझसे,
उस, दिन को याद करना ,
बस, आँखें मुंद, फैलाकर अपनी बाँहे,
मेरे पास होने का , अहसास करना...........
-------यशपाल सिंह"एडवोकेट"

रविवार, 11 दिसंबर 2011

बस, मुझे, कवि बना दिया .........भाग- 2


बस,
मुझे, कवि  बना  दिया .........भाग- 2
+++++++++++++++++++++

बस,
मुझे, कवि  बना  दिया .........

जब,
तुम मेरे साथ होती थी,
और  मिला  करते  थे,
हम,
अक्सर तन्हाई में ,
तुमने, फैलाई थी,  अपनी बाहें,
मुझे, आगोश में जकड़ लिया,
तुम्हारी,  बाँहों के, जकडन के,
उस एहसास मुझे ,
सब कुछ भुला दिया,
बस,
मुझे, कवि  बना  दिया .........
+++++++++++++++++++++

अजब,
वे, मुलाकाते थी,
प्रेम की बाते थी,
शब्द नही थे, तब
मौन स्वीक्रति थी,
गजब आँखों के इशारे थे,
हम लगते तुम्हे प्यारे थे,
बस,
तुमने,उन "मौन इशारों" को,

हमें,
शब्दों में बया करना सिखा दिया,
बस,
मुझे, कवि  बना  दिया .........
+++++++++++++++++++++

प्यार में,
अनेको किये थे,  हमने वादे,
साथ जीने मरने की,
खायी थी, ...... कुछ  कसमें,
याद है ,
क्या तुम्हे कुछ...... आज भी,
बस,
तुमने भूलकर,...  वे वादे,
मेरी  मुहब्बत को,
नागवार कर, जिन्दगी को,
आंशुओ का, सागर बना,
बस,
मुझे, कवि  बना  दिया .........
+++++++++++++++++++++

कहा था, तुमने,
कि हम बिछड़कर जी नही,
जुदाई का, कडवा घूट पी नही पायेगे,
हुआ था, मुझे एसाहस---- कि
तुम, बिन शायद,
मैं,  न जी पाऊ, और तन्हा होकर,
पागल न हो जाऊ,
बस,
शुक्रिया तुम्हारा,
तुमने होकर ..........अलग मुझसे,
मुझे, अकेला "जीना" सिखा दिया,

बस,
मुझे, कवि  बना  दिया .........
+++++++++++++++++++++

.. यशपाल सिंह"एडवोकेट"
रामपुर मनिहारान जिला सहारनपुर [उ०प्र०]
yashpalsingh5555@gmail.com

गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

बस, मुझे कवि बना दिया......


बस,
मुझे कवि बना  दिया......
+++++++++++++++
तुम्हारी,
इन  सुर्ख गालो ने,
बिखरे हुए बालो ने,
मस्त अदाओ ने,
महकी खुशबु ने ,
बहकी चाल  ने, 
तुम्हे, मेरे मन में बसा दिया,
बस,
मुझे कवि बना  दिया......
++++++++++++++
झील सी आँखों ने ,
भीगी हुई, पलको से ,
न, चाहते हुए भी,
प्यार का नस्त्र, 
इस, 
पत्थर  दिल में चुभो दिया, 
बस,
मुझे कवि बना  दिया......
++++++++++++++++
प्यार के,  ख्यालातो ने,
उत्पन्न हुए, जज बातो ने,
मुझे, 
अकेलेपन और नीरसता से,
कुछ उपर उठ दिया,
बस,
मुझे कवि बना  दिया......
+++++++++++++++
भावनाए  थी, पहले  भी,
इस, दिल में ,
छुपी हुई थी, मौन अभिव्यक्ति,
कोने में, 
थे, कुछ जीवित  एहसास,
तुमने, 
झन्झोरा मेरे मन को, कुछ ऐसे,
कि, बस
सोयी हुयी,
कवि, प्रतिभा  को जगा दिया 
बस,
मुझे कवि बना  दिया......
++++++++++++++++
धडकता था, ये दिल पहले भी, 
सिर्फ मेरे  लिए ,
पर, आकर तुमने,
दिल में ,
बनकर गैर,
इस दिल को गैरो  के लिए,
धडकना सीखा  दिया,
बस,
मुझे कवि बना  दिया........
************************
........यशपाल सिंह  "एडवोकेट"
      रामपुर  मनिहारान जिला सहारनपुर 

शनिवार, 3 दिसंबर 2011

महोदय, चले योग करने ....


हास्य कविता .....;

महोदय, चले योग करने ....
जब ,  
मेरा मोटा हुआ, पेट 
और बढने लगा, वेट,
तो शरीर को बेडोल ,
होने की चिंता ने सताया,
मेडम के कहने पर,, कि,
तलाश , 
तो 
मुझे,
योग सिखाता, एक 
गुरु, नजर आया,
गुरु जी को मैंने, 
अपनी समस्या बताई,
गुरु जी ने कहा, अब चिंता 
मत कर भाई ,
बस, 
अब सुबह चार  बजे,
उठने के फिक्र लग जा,
ज्वाइन कर रोज क्लास,
++++++++++++++++
फिर , क्या था,
घड़ी, में लगने, लगा 
रोज अलार्म,
चार बजे , हो जाती ,
दिनचर्या स्टार्ट,
मेडम, मुझे 
एक पल जायदा,
सोने न देती,
बस,
सुबह की सुहानी नींद,
हो गयी बर्बाद,
योग, ज्वाइन  करने का,
होने लगा मुझे पश्चाताप,
++++++++++++++++
गुरु जी, बोले
पहले करो हल्का-हल्का
व्यायाम,
उसके बाद, प्राणायाम!
फिर, योग का असर
देखना,
ये वर्षो से,
बंजर और वीरान पड़े खेत,
इस, बार फसलो से लहरायेगे,
यानि,
तुम्हारे, इस टकले सिर पर ,
जल्द, ही बाल उग आयेगे,
कम होगा पेट,
घट जायेगा वेट,
+++++++++++
मैने,
सोचा, अच्छा होगा,
करुगा योग,
कम होगा पेट,
शरीर हो जायेगा अपडेट,
फिर तो,
लड़किया मुझ पर लाइन मारेगी,
कुछ करेगी फोन,
कुछ करेगी मेल,
कुछ करेगी एस एम एस,
तो कुछ,
सिर्फ,मिस काल ही मारेगी,
अगर ऐसा हुआ,
तो मुझ पर फिर से,
जवानी आएगी,
मेरी उम्र ३२ की बजाये,
२२ की नजर आएगी,
++++++++++++++
और
अगर,
योग, महिलाये भी करे ,
तो वे भी अपडेट,
हो जाएगी,
उनकी वो बात, 
सच हो जाएगी,
क्या ?
..... वे पिछले,
की सालो से,
उम्र , पूछे जाने पर 
डाक्टर, के पर्चो पर,
अपनी उम्र, जो २४ की,
की लिखवाती आई है,
वे यदि,
योग, पर हाथ आजमायेगी ,
तो १९ की नजर आएगी,
बिना डायटिग किये,
अपना वेट घटाएगी,
65 के बजे  45 किलो पर आएगी,
++++++++++++++++++
योग,
करता रहा मैं निरंतर,
एक दिन ऐसा हुआ,
की, अचानक,
मेरे पेट में बहुत दर्द हुआ,
मुझे,
घर में दवाई नही दी गयी,
गुरु जी के बताये,
हथेली के  प्वाइंटो को दबाकर ,
मेरा इलाज शुरू हुआ,
बस,
कराह उठा  मैं,
पेट में कम था,
हथेली में ज्यादा दर्द हुआ,

....यशपाल सिंह"एडवोकेट"

मंगलवार, 29 नवंबर 2011

वो, जो, बेचते थे, दर्ददे दिल की दवा...

वो,
जोबेचते  थे,
दर्ददे दिल की दवा,
हमारे शहर में!!,
उनके,चर्चेये आम हो गये!! ,
वो खुद,
दिलकी बीमारी,
का, 
शिकार हो गये!!,
इस
कद्र बढ़ा
रोग, उनका,
कि,
ला इलाजहो गये!!
 
...यशपाल सिंह 

गुरुवार, 24 नवंबर 2011

प्यार शास्त्र है, अथवा विज्ञान......

प्यार शास्त्र है, अथवा   विज्ञान-
===================
प्यार शास्त्र है, अथवा   विज्ञान...
चलो,
करे इस समस्या का समाधान,
इसमे,
शास्त्र के बहुत गुण है,
भाव है, मार्मिकता है,
जज बात  हैं ,
लम्बे ख्यालात हैं, 
मौन अभिव्यक्ति है,
स्वयं उपजा अनुराग है,
कौतुहल है,
उत्सुकता है,
इच्छा है, चाह  है,
करुणा है, वेदना है ,
इसमें समावेशित, 
श्रंगार, और वियोग है,
इस प्रकार सिद्ध होता है, की
यह शास्त्रीय प्रकिर्या  है......
---------------------------------
लेकिन,
प्यार, अनुभूति की,
खोज है, 
फैलने वाला रोग है,
उत्साह बढ़ाने की , दवा है,
परमपराओ से,
इसमें कुछ अलग  है,
बदलती परिभाषा  है,
कुछ नया कर गुजरने,
कि-  अभिलाषा है,
बढती जिज्ञाषा,
शरीर कि भौतिक,
जरूरत है,
क्योकि,
आकर्षण का केंद्र,
अच्छी शक्ल,
सुरत है,
इस प्रकार विभेद कर पाना मुश्किल है,
समाधन सिर्फ एक है,
 विज्ञान का वही सूत्र , लगायें,
......प्यार आओ, करके सीखे....
...यशपाल सिंह 

 

शनिवार, 19 नवंबर 2011

प्यार का पौधा.........

प्यार का पौधा.........
----------------
प्यार का बीज, पाकर उचित वातावरण,
व तापमान,होता है, अंकुरित,
फिर बढने-पलने  लगता है,
धीरे-धीरे, समाज रूपी,
पौधशाला के बीच,
नज्म-बज्म, 
शायरी और गीत,
बन जाते है,
उर्वरक, कम्प्लीट,
भाव और भावना ,
उत्प्रेरक,
होते है, ऐसी स्थिति,
के बीच,
-----------------
प्रेमी युगल, होते है,स्वंय  माली,
आशा रखते है, करते है उम्मीद,
की हम तैयार, 
पेड़ के फल खाए ,
कई  बार हो भी जाते है, 
कामयाब ,
--------------
लेकिन,
अधिकतर, आ जाता है, कोई तूफान,
उखाड़ देता, प्यार के पौधे को,
उड़ा ले  जाता है,
अपने साथ,
रह जाते है,
बस,
बिखरे तिनके,
सुखी लताये,
यादो के रूप में,  
कुछ,
पीड़ा, सन्नाटा, मौन, 
ये अवशेष, 
बचते है, 
शेष,
....यशपाल सिंह "एडवोकेट"

सोमवार, 14 नवंबर 2011

नही भूला मैं, बरसात का वो दिन..


नही भूला  मैंबरसात का वो दिन 
वो तुम्हाराऔर मेरा,
अकेले  में मिलना !
देर तक .......
चुप्पी सादे रहना !
बरवक्त  बरसात  का....
आ जाना,
वो बारिश में भीगना,
वो प्यार भरी,  
प्यारी बाते,
वो तुम्हारा पास आना 
तुम्हाराभीगा बदन,... 
जुल्फों से, पानी का टपकना !
तुम्हारी, गर्म सासों......
की गर्माहट, का !
मेरी , 
गर्म सासों से टकराना !  
तुम्हारे, भीगे बदन का......
मेरे , बदन से टकराना !
बिजली का चमकना ! 
बादल की की तेज आवाज से! 
डर कर, मुझसे लिपट जाना !
तुम्हारी  बाहों की....
जकडन का अहसास....
आज भी है, मेरे पास... 
वो प्यार, वो मनुहार,
मेरे ऊपर वो ...
चुम्बनों की बौछर....



मंगलवार, 8 नवंबर 2011

इश्क....

इश्क.......
पहले खुशिया देता है,
फिर, हल्का हंसता है ,
उसके बाद पंख लगता है,
और प्यार की नाव पर,
बैठाता है,
नाव का भरोसा नही,
पार भी करा, सकती है,
वरना,
इस नाव के साथ 
इंसान डूब जाता है,
----------------------------

इश्क.........
गमो की  मण्डी  है,
गुमराह राहों की , पग डंडी है,
गमो को खरीदना है, 
तो , आ बोली लगा,
वरना छोड़,
पग डंडी,
सीधी राह से निकल जा,
बोली लगाये गा,
तो खुद फंस जायेगा,
बिना लिए वापस न जायेगा!,
गम, पड जायेगे गले,
सारी उम्र,
बस 
गमो में ही बिताएगा,
पहले प्यार,
को
कभी  भूल न पायेगा,

........  "यशपाल सिंह "

रविवार, 6 नवंबर 2011

प्यार की भाषा...........

प्यार की भाषा...........
=========
प्यार की ना कोई, भाषा है,
ना कोई बोली है,
बस, प्यार एक,
एक मौन एहसास है,
जुबा बन्द, रहती है,
लब, खामोश रहते है,
प्रेमी, फिर भी सुनते है, 
फिर भी कहते है,
,
जमाना,
मौजूद, रहता है,ये सारा,
तब भी, प्रेमी,
आँखों से बया करते,
तन्हाई सा, प्यार का इशारा,
बाते, ना करते हुए,
भांप जाते है,
दिल  का सारा मंजर ,
नही रहते, 
एक दूजे से बेखबर,
बस,
प्यार में, आँखे बनी रहती है,
रडार, कैच करती है, सिग्नल,
और , दिल 
कंट्रोल रूम,बन 
संभालता है,
कमान,
.....यशपाल सिंह 

सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

बाथरूम सोग.......


बाथरूम सोग.......
~~~~~~~~
वो शख्श जो कभी, ना नाचता है , ना गाता है,
ना,  शामिल होता  वह किसी दुःख में किसी के ,
ना, खुशियों की महफिल में कभी जाता है,
उलझा रहता है, स्वयं की ही, उलझन में,
बुझा -बुझा, दबा-दबा सा रहता है, जिन्दगी भर,
मुस्कुराता है , बस होटों  के अंदर,
हंसता नही कभी, खुलकर !
+++++++++++++++++ 
ऐसा शख्श,
एक जगह , बहुत इतराता,
और छुपकर देखे तो खुश,
नजर आता है,
जब वो घुसता है, बाथरूम में,
तो, बाथरूम, सोग जरुर गुनगुनाता है,
कभी मन ही मन गुनगुनाता है ,
तो,
कभी कोई गाना, जोर से गाता है,
.......यशपाल सिंह 

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

अगर तुम मेरे हो जाओ , तो...........


अगर तुम मेरे हो जाओ ,
तो...........
मुझेकिसी तमन्ना की,
दरकार ना रहे,
जिन्दगी यूँ  अधूरी न रहे,
आपस  में कोई दुरी  न रहे ,
प्यार में कोई मज़बूरी न रहे,
खत्म हो जाये ,
ये जिन्दगी का अनजाना सफर,
मिल जाये  मंजिल मुझे ,
अगर तुम मेरे हो जाओ ,
तो...........
मेरी
कोई तलाश ,अधूरी न रहे ,
बीतजाये ये  उम्र बस,
प्यार की अठखेलिया में ,
यूँ ही  रूठने मनाने में ,
तुम्हारे नाज उठने में,
खेलने और खाने में,
हंसने और हंसने में,
बच्चे खिलने में ,
अगर तुम मेरे हो जाओ ,
तो...........

मुझे
इस  जीवन की जरूरत न रहे! 
....यशपाल सिंह "एडवोकेट"

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी.......

धनतेरस विशेष  -
==========
शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी....... 

धनतेरस है, 
एक ऐसा त्यौहार, जिससे,
शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी.....
धनतेरस पर , जमकर होती है खरीदारी,
बजट को, नही देखती, खासकर घर की नारी,
जेब होती , दिख , रही है, फटा-फट सबकी  खाली,
शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी.........

तनाव में है, 
श्रीमान जी, देखकर के भीषण मंहगाई ,
नये-नये, सामान, खरीदने की, मेडम ने की तैयारी,
बाजार में, मची अफरा-तफरी है, भीड़ गजब की भरी,
घर ले जाने , के सामान का  बोझ बढकर हो गया, अत्यंत भरी!
बच्चो ने, भी आज ही पटाके खरीदने की जिद है, ठानी ,
शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी.........
........यशपाल सिंह "एडवोकेट"

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

ये,मेरे देश कि, माटी कि खुशबु...

ये,मेरे देश कि, माटी कि खुशबु...
है, बड़ी अनोखी, अनुपम और अलबेली
ये है, अभी तक एक अनसुलझी पहेली
इस , माटी का मोल न चूका सका कोई ,
दूर, रहकर  भी इससे, दूर न हो सका कोई,
घायल, के लिए यह बन जाये दवा,
रण- भूमि में वीरो का तिलक बन जाये ,
इस , माटी से आती हवा कि खुशबु... ..
प्रिय , को प्रीतम  कि  याद दिलाये,
कभी-कभी तो ये माटी, मेरे देश कि,
चिठ्ठीयो, में रखकर, याद दिलवाने, देश कि 
प्रवासियों को,  विदेश में भेजी जावे,
हर मोसम में , बदले यह अपनी खुशबु...
खुशबु, इसकी, महकी, बहकी,
अजब और मतवाली.....
ये,मेरे देश कि, माटी कि खुशबु...
 ...यशपाल सिंह "एडवोकेट"

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

मुझसे तो अच्छे , ये कबूतर है ......

मुझसे तो अच्छे , ये  कबूतर है ......
जिन्हें तुम , रोज डालती हो दाना,
ये लिपट जाते है, तुमसे करके,
चुगने का बहाना,
आ बैठते है, पास तुम्हारे ,
बने रहते है, चहेते और प्यारे,
फिदा हो तुम, इन पर,
लगते, तुम्हे ये जान से प्यारे,
काश  के मैं , भी कबूतर,
होता, 
और तुम्हारे, आगोश,
में, दाना चरने , बैठ जाता ,
उगली को पकड़, धीरे से सहलाता,
सुन्दरता, को करीब से देख पाता ,
अदाओ, पे  फिदा हो जाता,
इसके आलावा मुझे, 
कोई दूसरा काम, न होता,
कितना  होता, 
खुश नसीब , ,मैं , 
जो मेरे उपर ,
तुम्हारे प्यार का,
साया होता,   
......यशपाल सिंह 

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

उसकी तारीफ में दो शब्द.....


उसकी तारीफ में दो शब्द.... 
मैं, उसकी तारीफ, 
न ही करू, तो अच्छा है, - मुझे 
नही, पता उसका  प्यार झूठा है, 
कि सच्चा है,- --वो,
लडकी बड़ी चंचल है, 
जैसे सरिता बहती कल-कल है,
नागिन सी विचरती है 
हिरनी सी चलती है,
मुझे नही पता .......
स्वच्छ शांत,बीहर है , या ,
मस्त पवन का झोका  है,
छूने से कई बार
उसने, मुझे रोका है!,
मुझे नही पता ...
उसकी आँखे.म्रग नैनी है,
या, सागर सी गहरी  है ,
या, आपस में बतायते,
दो, खंजन पक्षी है ,
उसकी जुल्फे, 
सावन कि काली घटा है,
बादल सी गरजती है,
नागिन सी लरजती  है!,
मुझे नही पता .....
उसके होट
कितने नाजुक है ,
गुलाब से रंगीन , कोमल है,
या, बिम्ब के पके हुए फल है,
चेहरा,
कमल का फूल है ,
या, चन्द्रमा के समान है,
रंग गुलाबी है, या लाल है,
मुझे नही पता .....
उसका, आंचल गुजती ,
बदली की परछाई  है,-
या,-किसी वट व्रक्ष की छाया है,
वो, मनुष्य है भी या नही ,
या, -परी कोई आसमा से आई है ...
 ........."यशपाल सिंह"

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

कारवां चौथ विशष ..

कारवां चौथ विशष .....
=============
सुहागिनों, का श्रद्धा पर्व अनमोल, 
करवाँ, पूजन की , अनोखी चौथ,
भोर होते , वातावरण , कुछ,
अलग सा होत, 
कर सोलह श्रंगार , हाथ
मेहँदी, गल हार, पहन कंगन,  
बहके आंचल, महके आगन,
सब  सुहागिन, तज अन, जल, 
करत व्रत , अति कठोर ,
निज , सुहाग रहे , सलामत ,
आजीवन,
प्रभु, करे रक्षा , दर्शन करे ,
उसका   मार्ग , 
हाथ जोरी,
यही, विनती करत , बारम-बार,
प्रभु, सुन ले , 
सुहागिन की,
ये पुकार ..........

........यशपाल सिंह "एडवोकेट"

मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है....


मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है, 
जितनी 
तुम्हारे साथ बिताई थी 
तब 
जब तुम मर्जी की मलिक थी,
मैं शहज़ादा सलीम और तुम अनारकली थी
श्री और  लैला थी,  
सोनी, हीर  थी
स्त्री  अहं से युक्त थी,
चिन्ताओ से मुक्त थी ,परिवार-समाज से 
बड़े-बड़े झूठों से 
बिल्कुल अनजान थी। 
मेरी उम्र सिर्फ़फ उतनी है 
जितनी 
तुम्हारे साथ बिताई थी 
तब , जब 
तुम्हेबैठाकर मोटर साईकिल,
पिछली सीट पर,  
घूम क्र बितायी थी,
कालेज केन्टीन में 
कॉफी के धुएँ में 
लेट नाइट चैटिंग में। 
मोबाईल फोन पर ,
बातो में,
तब,
बहसें-तकरार थे 
समस्या-समाधान थे 
तेरे और मेरे के 
झंझट न झाड़ थे। 
मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है 
जितनी में 
मान-सम्मान था 
निर्णय की क्षमता थी 
नेह-विश्वास था 
साँचों में ढलने की 
शर्तें प्रतिमान न था 
जा-जा कर लौटते थी 
मैंने नहीं खींचा था 
आते -बतियाते थी,
मुझे 
सचमुच में चाहते थी। 

मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है ,
जब
एक सहलाता अकेलापन था 
मीठी वेदना थी 
प्रेम का भ्रम था 
पाने की चाह थी
जीने की  आशा थी,
प्यार  की भाषा  थी,
राह की तलाश थी ,पहचाना अपरिचय था 
वज्र विश्वास था 
सुखद प्रतीक्षा थी ,
प्यार की प्यास थी,
तुम 
चन्द्रमा की चन्दनी थी,
बस,एक प्रेमिका थी,
.....यशपाल सिंह "एडवोकेट"