बस,
मुझे, कवि बना दिया .........भाग- 2
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बस,
मुझे, कवि बना दिया .........
जब,
तुम मेरे साथ होती थी,
और मिला करते थे,
हम,
अक्सर तन्हाई में ,
तुमने, फैलाई थी, अपनी बाहें,
मुझे, आगोश में जकड़ लिया,
तुम्हारी, बाँहों के, जकडन के,
उस एहसास मुझे ,
सब कुछ भुला दिया,
बस,
मुझे, कवि बना दिया .........
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अजब,
वे, मुलाकाते थी,
प्रेम की बाते थी,
शब्द नही थे, तब
मौन स्वीक्रति थी,
गजब आँखों के इशारे थे,
हम लगते तुम्हे प्यारे थे,
बस,
तुमने,उन "मौन इशारों" को,
हमें,
शब्दों में बया करना सिखा दिया,
बस,
मुझे, कवि बना दिया .........
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प्यार में,
अनेको किये थे, हमने वादे,
साथ जीने मरने की,
खायी थी, ...... कुछ कसमें,
याद है ,
क्या तुम्हे कुछ...... आज भी,
बस,
तुमने भूलकर,... वे वादे,
मेरी मुहब्बत को,
नागवार कर, जिन्दगी को,
आंशुओ का, सागर बना,
बस,
मुझे, कवि बना दिया .........
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कहा था, तुमने,
कि हम बिछड़कर जी नही,
जुदाई का, कडवा घूट पी नही पायेगे,
हुआ था, मुझे एसाहस---- कि
तुम, बिन शायद,
मैं, न जी पाऊ, और तन्हा होकर,
पागल न हो जाऊ,
बस,
शुक्रिया तुम्हारा,
तुमने होकर ..........अलग मुझसे,
मुझे, अकेला "जीना" सिखा दिया,
बस,
मुझे, कवि बना दिया .........
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.. यशपाल सिंह"एडवोकेट"
रामपुर मनिहारान जिला सहारनपुर [उ०प्र०]
yashpalsingh5555@gmail.com
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