प्यार का पौधा.........
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प्यार का बीज, पाकर उचित वातावरण,
व तापमान,होता है, अंकुरित,
फिर बढने-पलने लगता है,
धीरे-धीरे, समाज रूपी,
पौधशाला के बीच,
नज्म-बज्म,
शायरी और गीत,
बन जाते है,
उर्वरक, कम्प्लीट,
भाव और भावना ,
उत्प्रेरक,
होते है, ऐसी स्थिति,
के बीच,
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प्रेमी युगल, होते है,स्वंय माली,
आशा रखते है, करते है उम्मीद,
की हम तैयार,
पेड़ के फल खाए ,
कई बार हो भी जाते है,
कामयाब ,
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लेकिन,
अधिकतर, आ जाता है, कोई तूफान,
उखाड़ देता, प्यार के पौधे को,
उड़ा ले जाता है,
अपने साथ,
रह जाते है,
बस,
बिखरे तिनके,
सुखी लताये,
यादो के रूप में,
कुछ,
पीड़ा, सन्नाटा, मौन,
ये अवशेष,
बचते है,
शेष,
....यशपाल सिंह "एडवोकेट"
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