ये,मेरे देश कि, माटी कि खुशबु...
है, बड़ी अनोखी, अनुपम और अलबेली
ये है, अभी तक एक अनसुलझी पहेली
इस , माटी का मोल न चूका सका कोई ,
दूर, रहकर भी इससे, दूर न हो सका कोई,
घायल, के लिए यह बन जाये दवा,
रण- भूमि में वीरो का तिलक बन जाये ,
इस , माटी से आती हवा कि खुशबु... ..
प्रिय , को प्रीतम कि याद दिलाये,
कभी-कभी तो ये माटी, मेरे देश कि,
चिठ्ठीयो, में रखकर, याद दिलवाने, देश कि
प्रवासियों को, विदेश में भेजी जावे,
हर मोसम में , बदले यह अपनी खुशबु...
खुशबु, इसकी, महकी, बहकी,
अजब और मतवाली.....
ये,मेरे देश कि, माटी कि खुशबु...
...यशपाल सिंह "एडवोकेट"
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