सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

बाथरूम सोग.......


बाथरूम सोग.......
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वो शख्श जो कभी, ना नाचता है , ना गाता है,
ना,  शामिल होता  वह किसी दुःख में किसी के ,
ना, खुशियों की महफिल में कभी जाता है,
उलझा रहता है, स्वयं की ही, उलझन में,
बुझा -बुझा, दबा-दबा सा रहता है, जिन्दगी भर,
मुस्कुराता है , बस होटों  के अंदर,
हंसता नही कभी, खुलकर !
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ऐसा शख्श,
एक जगह , बहुत इतराता,
और छुपकर देखे तो खुश,
नजर आता है,
जब वो घुसता है, बाथरूम में,
तो, बाथरूम, सोग जरुर गुनगुनाता है,
कभी मन ही मन गुनगुनाता है ,
तो,
कभी कोई गाना, जोर से गाता है,
.......यशपाल सिंह 

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

अगर तुम मेरे हो जाओ , तो...........


अगर तुम मेरे हो जाओ ,
तो...........
मुझेकिसी तमन्ना की,
दरकार ना रहे,
जिन्दगी यूँ  अधूरी न रहे,
आपस  में कोई दुरी  न रहे ,
प्यार में कोई मज़बूरी न रहे,
खत्म हो जाये ,
ये जिन्दगी का अनजाना सफर,
मिल जाये  मंजिल मुझे ,
अगर तुम मेरे हो जाओ ,
तो...........
मेरी
कोई तलाश ,अधूरी न रहे ,
बीतजाये ये  उम्र बस,
प्यार की अठखेलिया में ,
यूँ ही  रूठने मनाने में ,
तुम्हारे नाज उठने में,
खेलने और खाने में,
हंसने और हंसने में,
बच्चे खिलने में ,
अगर तुम मेरे हो जाओ ,
तो...........

मुझे
इस  जीवन की जरूरत न रहे! 
....यशपाल सिंह "एडवोकेट"

रविवार, 23 अक्तूबर 2011

शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी.......

धनतेरस विशेष  -
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शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी....... 

धनतेरस है, 
एक ऐसा त्यौहार, जिससे,
शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी.....
धनतेरस पर , जमकर होती है खरीदारी,
बजट को, नही देखती, खासकर घर की नारी,
जेब होती , दिख , रही है, फटा-फट सबकी  खाली,
शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी.........

तनाव में है, 
श्रीमान जी, देखकर के भीषण मंहगाई ,
नये-नये, सामान, खरीदने की, मेडम ने की तैयारी,
बाजार में, मची अफरा-तफरी है, भीड़ गजब की भरी,
घर ले जाने , के सामान का  बोझ बढकर हो गया, अत्यंत भरी!
बच्चो ने, भी आज ही पटाके खरीदने की जिद है, ठानी ,
शुरू हो गयी है, दीपावली की तैयारी.........
........यशपाल सिंह "एडवोकेट"

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

ये,मेरे देश कि, माटी कि खुशबु...

ये,मेरे देश कि, माटी कि खुशबु...
है, बड़ी अनोखी, अनुपम और अलबेली
ये है, अभी तक एक अनसुलझी पहेली
इस , माटी का मोल न चूका सका कोई ,
दूर, रहकर  भी इससे, दूर न हो सका कोई,
घायल, के लिए यह बन जाये दवा,
रण- भूमि में वीरो का तिलक बन जाये ,
इस , माटी से आती हवा कि खुशबु... ..
प्रिय , को प्रीतम  कि  याद दिलाये,
कभी-कभी तो ये माटी, मेरे देश कि,
चिठ्ठीयो, में रखकर, याद दिलवाने, देश कि 
प्रवासियों को,  विदेश में भेजी जावे,
हर मोसम में , बदले यह अपनी खुशबु...
खुशबु, इसकी, महकी, बहकी,
अजब और मतवाली.....
ये,मेरे देश कि, माटी कि खुशबु...
 ...यशपाल सिंह "एडवोकेट"

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

मुझसे तो अच्छे , ये कबूतर है ......

मुझसे तो अच्छे , ये  कबूतर है ......
जिन्हें तुम , रोज डालती हो दाना,
ये लिपट जाते है, तुमसे करके,
चुगने का बहाना,
आ बैठते है, पास तुम्हारे ,
बने रहते है, चहेते और प्यारे,
फिदा हो तुम, इन पर,
लगते, तुम्हे ये जान से प्यारे,
काश  के मैं , भी कबूतर,
होता, 
और तुम्हारे, आगोश,
में, दाना चरने , बैठ जाता ,
उगली को पकड़, धीरे से सहलाता,
सुन्दरता, को करीब से देख पाता ,
अदाओ, पे  फिदा हो जाता,
इसके आलावा मुझे, 
कोई दूसरा काम, न होता,
कितना  होता, 
खुश नसीब , ,मैं , 
जो मेरे उपर ,
तुम्हारे प्यार का,
साया होता,   
......यशपाल सिंह 

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

उसकी तारीफ में दो शब्द.....


उसकी तारीफ में दो शब्द.... 
मैं, उसकी तारीफ, 
न ही करू, तो अच्छा है, - मुझे 
नही, पता उसका  प्यार झूठा है, 
कि सच्चा है,- --वो,
लडकी बड़ी चंचल है, 
जैसे सरिता बहती कल-कल है,
नागिन सी विचरती है 
हिरनी सी चलती है,
मुझे नही पता .......
स्वच्छ शांत,बीहर है , या ,
मस्त पवन का झोका  है,
छूने से कई बार
उसने, मुझे रोका है!,
मुझे नही पता ...
उसकी आँखे.म्रग नैनी है,
या, सागर सी गहरी  है ,
या, आपस में बतायते,
दो, खंजन पक्षी है ,
उसकी जुल्फे, 
सावन कि काली घटा है,
बादल सी गरजती है,
नागिन सी लरजती  है!,
मुझे नही पता .....
उसके होट
कितने नाजुक है ,
गुलाब से रंगीन , कोमल है,
या, बिम्ब के पके हुए फल है,
चेहरा,
कमल का फूल है ,
या, चन्द्रमा के समान है,
रंग गुलाबी है, या लाल है,
मुझे नही पता .....
उसका, आंचल गुजती ,
बदली की परछाई  है,-
या,-किसी वट व्रक्ष की छाया है,
वो, मनुष्य है भी या नही ,
या, -परी कोई आसमा से आई है ...
 ........."यशपाल सिंह"

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

कारवां चौथ विशष ..

कारवां चौथ विशष .....
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सुहागिनों, का श्रद्धा पर्व अनमोल, 
करवाँ, पूजन की , अनोखी चौथ,
भोर होते , वातावरण , कुछ,
अलग सा होत, 
कर सोलह श्रंगार , हाथ
मेहँदी, गल हार, पहन कंगन,  
बहके आंचल, महके आगन,
सब  सुहागिन, तज अन, जल, 
करत व्रत , अति कठोर ,
निज , सुहाग रहे , सलामत ,
आजीवन,
प्रभु, करे रक्षा , दर्शन करे ,
उसका   मार्ग , 
हाथ जोरी,
यही, विनती करत , बारम-बार,
प्रभु, सुन ले , 
सुहागिन की,
ये पुकार ..........

........यशपाल सिंह "एडवोकेट"

मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है....


मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है, 
जितनी 
तुम्हारे साथ बिताई थी 
तब 
जब तुम मर्जी की मलिक थी,
मैं शहज़ादा सलीम और तुम अनारकली थी
श्री और  लैला थी,  
सोनी, हीर  थी
स्त्री  अहं से युक्त थी,
चिन्ताओ से मुक्त थी ,परिवार-समाज से 
बड़े-बड़े झूठों से 
बिल्कुल अनजान थी। 
मेरी उम्र सिर्फ़फ उतनी है 
जितनी 
तुम्हारे साथ बिताई थी 
तब , जब 
तुम्हेबैठाकर मोटर साईकिल,
पिछली सीट पर,  
घूम क्र बितायी थी,
कालेज केन्टीन में 
कॉफी के धुएँ में 
लेट नाइट चैटिंग में। 
मोबाईल फोन पर ,
बातो में,
तब,
बहसें-तकरार थे 
समस्या-समाधान थे 
तेरे और मेरे के 
झंझट न झाड़ थे। 
मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है 
जितनी में 
मान-सम्मान था 
निर्णय की क्षमता थी 
नेह-विश्वास था 
साँचों में ढलने की 
शर्तें प्रतिमान न था 
जा-जा कर लौटते थी 
मैंने नहीं खींचा था 
आते -बतियाते थी,
मुझे 
सचमुच में चाहते थी। 

मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है ,
जब
एक सहलाता अकेलापन था 
मीठी वेदना थी 
प्रेम का भ्रम था 
पाने की चाह थी
जीने की  आशा थी,
प्यार  की भाषा  थी,
राह की तलाश थी ,पहचाना अपरिचय था 
वज्र विश्वास था 
सुखद प्रतीक्षा थी ,
प्यार की प्यास थी,
तुम 
चन्द्रमा की चन्दनी थी,
बस,एक प्रेमिका थी,
.....यशपाल सिंह "एडवोकेट" 

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

चलो, आज ,अपरिचित, का परिचय, उस,अपरिचित, से कराए....

चलो,
आज ,अपरिचित, का परिचय,
उस,अपरिचित, से कराए.............
हर,ले उसकी,करुणा ,बन धरा ,
इंद्रधनुषी ,आकाश उसे,बनाये,
मन मोह, लालायित कर, भर ,
श्रंगार स्वर, कर्ण उसके,
खुद वीणा, बन ,सहस्त्र
नवजीवन, की आश..
जगाये.............

चलो,
आज ,अपरिचित, का परिचय,
उस,अपरिचित, से कराए.........
बन मन मीत, कर अट्खेली,
दुर्ग,ध्वस्त कर, कठोर हर्दय,
भेद सब, घर्णा चक्र ,
बन अभिमन्यु,
तज सब, मोह जीवन
शून्य शिखर ,पर 
परचम , लहराए............

चलो,
आज ,अपरिचित, का परिचय,
उस,अपरिचित, से कराए..............
....आपका यशपाल सिंह "एडवोकेट"

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

रिचार्ज हो रहा है .....


मित्रो ,
मुझे मेरे एक मित्र ने एक चुटकला मोबाईल पर सैंड किया , 
मैंने उस  चुटकले को कविता का रूप देने की कोशिश की है,
पता नही आप  लोगो को मेरी कविता पसंद आएगी या नही ,
अगर ,पसंद आये तो बताना जरुर - - - - - 

रिचार्ज हो रहा है .....

एक मित्र , दुसरे से,बोला 
देख ,तेरे घर में सांप निकला है ,
और तेरी बीवी . खा  रहा है ,
और एक तू है , जो चुपचाप ,
ये सब देखे  जा रहा है,

दूसरा बोला-
यार तू  मुर्ख है,
क्या, "रिचर्ज" का मतलब समझता है ,
जी हाँ , पहले ने कहा,
फिर तो तू जल्दी ही समझ जायेगा !
सुन,
त्योहारों का सीजन चल रहा  है ,
सांप का जहर कम पड़ गया  ,
होगा ,  इसलिए 
वह तो  मेरी बीवी को काट  ,
रिचार्ज होने आया है ,

पहला बोला-
अब देख, तेरी बीवी बेहोश हो रही है ,
दूसरा बोला-
"विक्नैश" का मतलब समझता है ,
तो सुन,
जब , कोई रक्तदान  करता है ,
या उससे आपात  में रक्त ,
ले  लिया  जाता है , तो 
कुछ देर के लिए , ऐसा मनुष्य 
"विक्नैश हो जाता है,
इसी प्रकार , 
सांप को जहर ,देकर मेरी बीवी 
अपने आपको ,
"विक्नैश" महसूस कर रही है,
और सुन,
कभी  -कभी ऐसा,
होता है की , तेज वोल्ट ,
के कारण, रिचार्ज हो रहा ,
डिवाइस ध्वस्त भी हो जाता है ,
मुझे तो अब सांप की बड़ी चिंता है,
वो रिचर्ज हो जायेगा ,
या फिर जान से जायेगा ..........
.........यशपाल सिंह "एडवोकेट"

सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

नींद उड़ा ले गये , वो ....

नींद उड़ा ले गये , वो ...........



नींद उड़ा ले गये , वो
चैन मेरा, जाता रहा 
जिन्हें  मैं, चाहता रहा ,
उम्र भर, 
देखता रहा
ख्वाब जिनके ,
करता रहा , पूजा जिनकी ,
करता रहा, ताउम्र जिन्हें मैं,
याद,
नींद उड़ा ले गये , वो.........

जिनके प्यार की ,
उलझन में उलझा रहा मै,
उम्र भर, 
बेइनतहा ,करता रहा 
प्यार ,
मुझे, अकेला छोड़ ,
फुर हुए ,
फुलझरी. बन 
जल्दी से 
गुम, हुए 
बस ,अवशेष ही ,
रहे , शेष 
चले  गये,
करके, मुझे बर्बाद 
नींद उड़ा ले गये , वो ......
 ....."यशपाल सिंह एडवोकेट" 

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

रावण की जुबानी -


मित्रो,
मेरी यह कविता दशहरा विशेष है, मुझे आशा है की आप सभी को बहुत पसंद आएगी !
कविता में मैंने , रावण दहन का सजीव चित्रण करने का भरसक प्रयास किया  है ,
आप को कविता कैसी, बताये......

रावण की जुबानी -
 
जला दिया, मैंने अपनी उस देह को,
कर दिया, सब बुराइयों का अंत,
उस नस्वर देह के साथ,
खत्म हो गयी, मेरी ,
बुराईया और पाप,
हिंसा,द्वेष,इर्ष्या,
चला गया,मेरा,
अंहकार,
का !

अब जो , शेष बचा है,  मुझमे,
वह है,   मेरी पवित्र आत्मा,
जो हो गयी है , शुद्ध, पावन ,
परोपकारी,अहिंसावादी,
जो दुसरो को दे सके ,
आदर व सम्मान ,
जो, त्यागकर,
अभिमान,
को !

तभी तो, प्रसन्न हो, उस  प्रभु ने दिया है, मुझको,
सदा- सदा,अमर हो जाने यह अनोखा वरदान,
लोग मनाते, जन्मदिन यहाँ, तन्हा अपना, 
लेकिन , मेरा तो, दाह-संस्कार भी, यहाँ 
किसी त्यौहार या महान पर्व की भांति 
देखा जाता,लम्बी-कतारे,लगा, 
बैठकर दर्शक-दीर्घा में,
या,नम्बर न आने ,
पर, खड़े, रहकर ही,
जनाब,
आप!

जिसमे लोगो को आनन्द आता, असीम-अपार,
मुर्दों की अस्थियाँ,जो लोग  छुने  से , भी
घबराते है, वें ही लोग होते ही , मेरा 
दाह-संस्कार, टूट पड़ते है, अस्थियो 
को मेरी , उठाने, मची रहती है,
उनमे होड़, गंगा-विसर्जन,
की नही रहती,जरूरत 
अस्थियाँ, रख देते
लोग, घर अपने
यहाँ से ले,
जाकर
मेरी ! 

.........आपका यशपाल सिंह "एडवोकेट"

सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

मैं ढूढता रहा .......

मैं 
ढूढता रहा ,
तुम्हे उम्र भर
तुम ना, कहीं
मिले  मगर,
क्या मेरी चाहत  में 
कमी थी, कोई
जो मिलकर भी तुम
मिल ना सके
फूल, बहारो के 
खिल ना सके ]
वीरान रही जिन्दगी]  अरमा  रहे अधूरे 
ख्वाब तुम हो गये, सपने सब धुँआ हुए!
........यशपाल सिंह एडवोकेट