मैंने, न जाने क्यों?
सम्भालकर रखा है,आज भी,
वो तुम्हारा दिया,
गुलाब का फूल।....
कुछ...तो, बाकि है।...
हम दोनों के बीच
आज फिर, एक
किताब खोलकर देखी,
तो, सामने आ गया,.....
गुजरे जमाने की,
याद दिल गया।....
रंग, सुर्ख निकला,
सुखी हुई थी,..पत्तिया
काँटों ने, फिदरत न बदली।
ज्यों के त्यों थे, सूल...
सम्भालकर रखा है,आज भी,
वो तुम्हारा दिया,
गुलाब का फूल।....
कुछ...तो, बाकि है।...
हम दोनों के बीच
आज फिर, एक
किताब खोलकर देखी,
तो, सामने आ गया,.....
गुजरे जमाने की,
याद दिल गया।....
रंग, सुर्ख निकला,
सुखी हुई थी,..पत्तिया
काँटों ने, फिदरत न बदली।
ज्यों के त्यों थे, सूल...
©Yshpal singh..
7-6-2015 4:40pm
7-6-2015 4:40pm
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