मंगलवार, 13 सितंबर 2011

दिल-ए-नादाँ,


दिल-ए-नादाँदिल-ए-नादाँ,
इसदिल-ए-नादाँ,
का जो शोर है,
फैला चारो ओर है!

यहाँआकर अवसर,
मिला मुझे 

ह्रदय के भाव को अभिव्यक्त ,
करने का,
साहित्य, समाज, साहस , और श्रंगार, 
प्यार ,मित्र , और परिवार ,
भ्रष्टाचार , शिष्टाचार , और  त्यौहार,
को दिल से महसूस , 
करने का, 
व् 
किसी के नैन, केश, उर, उमंग
सोंदर्य , व्यवहार 
प्यार,  जज बात,
पर 
अनोखी कविताई,
करने  का,
इसके आलावा भी
शेष रहे ,विषय रह गये ,
कई, और है,

दिल-ए-नादाँदिल-ए-नादाँ,
इसदिल-ए-नादाँ,
का जो शोर है,
फैला चारो ओर है!

मै, आपको, राज क्या
बताऊ, 
यहाँ , अवसर मिला मुझे ,
किसी के बहुत करीब ,
आने का,
दिल, मै उतर जाने का ,
प्यार को  जताने का,
अभिव्यक्ति, 
में खो जाने का, 
किसी की यादो में ,
ठंडी आहे भरने का ,
जुदाई , तन्हाई , बेवफाई ,
और इन्तहाई ,
से
गुजरने का, 
किसी की अदाओ पे मरने का ,
भावनाओ कि कद्र करने का,
इसके , आलावा  भी 
बताना , आपको कुछ और है,

दिल-ए-नादाँदिल-ए-नादाँ,
इसदिल-ए-नादाँ,
का जो शोर है,
फैला चारो ओर है!

मै, आपने आपको,
समझ बैठा था ,
कवि,
पर यहाँ आकर ,
देख, कि मैं तो ,
दर्शक के लायक भी नही,
यहाँ,
यहाँ ,तो मंचासीन ,
कोई, और है,  कोई, और है,  कोई, और है, 
....... यशपाल सिंह 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें