मुझे हक नही ,
कि मैं आज भी,
आपको
अपना कहू ,
अब वो सम्मा
बुझ चुकी,
परवाना भी जल गया !
शुआत हो चुकी,
पतझड़ की,
फूल कहा, ठरते ,
जब कोई,
पत्ते ही नही रहा !
मुझे हक नही ,
कि, मैं आज भी,
आपको
अपना कहू ,
सूख
गया वो बरगद ,जिसके नीचे
हम मिला करते थे हम
तन्हाई में अक्सर ,
लकड़ी
ले गयी
बीनने वाली
जला दी चुल्ल्हे
में
घर ले जाकर!
मुझे हक नही ,
कि, मैं आज भी,
आपको
अपना कहू ,
शांत हुआ वो,
प्यार की
लहरों
का
उफान,
और अब पानी
है शांत
डूब गयी
वो,
ख्वाबो की
किस्ती
जिस पर हम करते थे मस्ती !
नही रहा खिव्य्या,
न बचा पतवार,
बस प्यार के ,
अवशेष
रह गये
यार !
मुझे हक नही ,
कि, मैं आज भी,
आपको
अपना कहू ,
या
आपके दिल में ,
रहू,
आप हो गये किसी और
के
और हमारा कोई
हो गया!
........यशपाल सिंह
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