सोमवार, 12 सितंबर 2011

मुझे हक नही ,





मुझे  हक नही ,
कि मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,
अब वो सम्मा
बुझ चुकी
परवाना भी जल  गया  !
शुआत हो चुकी,
पतझड़ की,
फूल कहाठरते ,
जब  कोई
पत्ते ही नही  रहा !

मुझे  हक नही ,
किमैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

सूख 
गया  वो  बरगद ,जिसके नीचे 
हम मिला करते थे हम 
तन्हाई में अक्सर ,
लकड़ी 
ले गयी 
बीनने वाली 
जला दी चुल्ल्हे  
में 
घर ले जाकर!

मुझे  हक नही ,
किमैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

शांत हुआ वो,
प्यार की
लहरों
का 
उफान,
और अब पानी
है शांत
डूब गयी
वो
ख्वाबो की 
किस्ती 
जिस पर हम करते थे मस्ती !
नही रहा   खिव्य्या,
न बचा पतवार,
बस प्यार के ,
अवशेष 
रह गये 
यार !

मुझे  हक नही ,
किमैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

या
आपके दिल  में ,
रहू
आप हो गये किसी और 
के 
और हमारा कोई 
हो गया!

........यशपाल सिंह 

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