गर्मी में, कब्रिस्तान से आती आवाज...
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पड़ रही है, गजब की गर्मी,
गर्मी से तंग है, हाल,
ऐसे में, कब्रिस्तान से, आई एक आवाज,
अरे, ओ जिन्दा दुनिया के, इंसानों,
मुझे तुम से शिकायत है,
मैं हूँ , गर्मी से परेशान,
नही कर सके,
तुम मेरी कब्र की जगह का,
मुनाशिब इंतजाम,
क्या जमीन कम थी, जो तुमने मेरी कब्र को,
ऐसी जगह बनाया........जहाँ....
मुझे तो गर्मी ने परेशान किया,
मच्छरों में कहाँ, दम था,
मेरी कब्र वहाँ , बनाई,
जहाँ नाले का गंद था,..........
निकली निकम्मी मेरी औलाद,
मेरी, छोड़ी सम्पत्ति के बँटवारे लेकर,
पैदा करते , नित्य नये विवाद,
पडौसी के लडके को देखो,
आकर के कब्रिस्तान,
रोज सुबह और शाम
हवा झौलता,
हाथ के पंखे से,
वालिद को अपने,
पढता पाठ, कुरान,
अब डर, लगता इस कमरे की,
घुटन से मुझको,
करती गर्मी परेशान,
आखिर मैं, भी था कभी,
एक जिन्दा इंसान,
भावना थी, मुझमे भी कभी,
था, संवेदनावान,
खुद भूखा रहकर,
औलाद को खिलाता था,
जब, गर्मी में खुद ना सो कर,
औलाद को सुलाता था,
हवा झौलता, हाथ के पंखे से,
मच्छरों को उडाता था,
न जाने कब, आँख लगती,
कब मैं सो जाता था,
लेख तिथि १७-०५-२०१२ ई०
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