अजब है, ये प्रेम कहानी,
कभी लगती है, नयी,
कभी लगती है, पुरानी........
इस भौतिकता के दौर में,
लोगों को, नित नये आवास,
पसंद है,
मैं तुम्हारे,... दिल के,
टूटे खंडरो में रहता हूँ,
कभी बनकर लहू, जिगर का,
धमनियों में बहता हूँ,
भले ही तुम न कहो,
मुझे, पता है,
तुम भी याद, करते हो,
मुझे ,
तन्हाई में अक्सर,
और,
यादों के सितम, सहते हो,
ये तुम्हारी, बदकिस्मती है,
की , तुम बया नही, करते,
जब, किसी नये को,
मकान किराये पर दिया हो,
तो सिकवा-गिला नही करते,
.......”यशपाल सिंह”
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