शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है....


मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है, 
जितनी 
तुम्हारे साथ बिताई थी 
तब 
जब तुम मर्जी की मलिक थी,
मैं शहज़ादा सलीम और तुम अनारकली थी
श्री और  लैला थी,  
सोनी, हीर  थी
स्त्री  अहं से युक्त थी,
चिन्ताओ से मुक्त थी ,परिवार-समाज से 
बड़े-बड़े झूठों से 
बिल्कुल अनजान थी। 
मेरी उम्र सिर्फ़फ उतनी है 
जितनी 
तुम्हारे साथ बिताई थी 
तब , जब 
तुम्हेबैठाकर मोटर साईकिल,
पिछली सीट पर,  
घूम क्र बितायी थी,
कालेज केन्टीन में 
कॉफी के धुएँ में 
लेट नाइट चैटिंग में। 
मोबाईल फोन पर ,
बातो में,
तब,
बहसें-तकरार थे 
समस्या-समाधान थे 
तेरे और मेरे के 
झंझट न झाड़ थे। 
मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है 
जितनी में 
मान-सम्मान था 
निर्णय की क्षमता थी 
नेह-विश्वास था 
साँचों में ढलने की 
शर्तें प्रतिमान न था 
जा-जा कर लौटते थी 
मैंने नहीं खींचा था 
आते -बतियाते थी,
मुझे 
सचमुच में चाहते थी। 

मेरी उम्र सिर्फ़ उतनी है ,
जब
एक सहलाता अकेलापन था 
मीठी वेदना थी 
प्रेम का भ्रम था 
पाने की चाह थी
जीने की  आशा थी,
प्यार  की भाषा  थी,
राह की तलाश थी ,पहचाना अपरिचय था 
वज्र विश्वास था 
सुखद प्रतीक्षा थी ,
प्यार की प्यास थी,
तुम 
चन्द्रमा की चन्दनी थी,
बस,एक प्रेमिका थी,
.....यशपाल सिंह "एडवोकेट" 

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