सोमवार, 3 अक्तूबर 2011

मैं ढूढता रहा .......

मैं 
ढूढता रहा ,
तुम्हे उम्र भर
तुम ना, कहीं
मिले  मगर,
क्या मेरी चाहत  में 
कमी थी, कोई
जो मिलकर भी तुम
मिल ना सके
फूल, बहारो के 
खिल ना सके ]
वीरान रही जिन्दगी]  अरमा  रहे अधूरे 
ख्वाब तुम हो गये, सपने सब धुँआ हुए!
........यशपाल सिंह एडवोकेट 

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