शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

जुगाड़........

मेरे एक दोस्त ने कहा कि,  मुझे ,
कवि सम्मेलन जाना है ,  यार-
एक अच्छी सी कविता का , फटाफट  
जुगाड़,  कर दो ,  कविता ऐसी हो-
जो अनोखी हो, अलबेली  हो , और 
जिसमे हो  सच्चाई,
हास्य का भी ,विलय हो ,
कविता ऐसी लिख दो मेरे भाई ,
मैंने , कहा चलो , ये समझो , कविता का ,
जुगाड़ हो गया, और
इस कविता का शीर्षक स्वयं जुगाड़ हो गया!

जुगाड़ में भारत  ,सबसे  उपर ,
विदेशी भी करते है, इसकी  तारीफ ,
सब मानते इसका लोहा , इससे होते 
भयभीत ,
जब खराब हो जाती , विदेशियों कि मशीन
तो उन्हें याद आता भारत , का जुगाड़ !
जुगाड़ है, ऐसी युक्ति जो कर दे सब जुगाड़ ,
इसीलिए भारत के जुगाड़ का नाम सुनकर ,
सभी देश थर्रा जाते,

जुगाड़ यहाँ,  कराता है ,सवारी
सबको
सब ,लोग यहाँ   जुगाड़ के चक्कर में लगे है!
नेता जी , अपने टिकिट के जुगाड़ में लगे है ,
आशिक, प्रेमिका को पटाने के जुगाड़ में लगे है ,
कर्मचारी , रिश्वत को खाने के जुगाड़ में लगे है ,
अधिकारी, ट्रांफर रुकवाने के जुगाड़ में लगे है ,
अन्ना ,रिश्वत को  रुकवाने के जुगाड़ में लगे है ,
छुटभैया,नेता  चमचा गिरी के जुगाड़ में लगे है ,

और मेरा क्या ? 
मैं, नही-कबीर-सुर-तुलसी ,
जो ,रस-छन्द-अलंकर, का करके समावेश,
दोहा-चोपाई-सोरठा  छन्द- कि भाषा लेकर निर्देश 
शुरू करू कविताई !
मेरी तो अपनी, सरल भाषा है,
जिसमे मैं करता हू , कविताई
मैं , तो जुगाड़ कर सकता हु, भाई!
शब्दों को तोड़-मरोड़ कर,
करता हु, कविताई !
लगता है, 
कि तुम्हारी कविता का जुगाड़ ,
हो गया , मेरे भाई ,
......यशपाल सिंह 

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